गुरुवार, फ़रवरी 15, 2024

प्रिय किससे बाँटू नह नयन के


प्रिय किससे बाँटूँ नेह नयन के?

 

 

प्रिय किससे बाँटूँ नेह नयन के?

किससे बाँटूँ जीवन के वे

छुटपुट दुख-सुख

बिन बोले जिन भावों को

मुखमंडल की रेखाओं में

तुम पढ़ लेती थी।

 

कैसे खोलूँ  उलझे ग्रंथि हृदय के?

बातों बातों मे तुम जिन्हें

सुलझा देती थी।

प्रिय कैसे खोलूँ मन के वे वातायन?

जहाँ छुटमुट अरमानों के

कुम्हलाए फूलों की गंध भरे हैं।

 

प्रिय किससे बाँटूँ नेह नयन के?

किससे बाँटूँ जीवन के वे

छुटपुट दुख-सुख

 

वह नोक-झोंक, कुछ मान-मन्नौवल

वो हँसी खुशी, कुछ ताने- शिकवे

जीवन के जो वातायन थे

बंद हुए उस खिड़की को 

प्रिय अब कैसे खोलूँ?

 

प्रिय किससे बाँटूँ नेह नयन के?

किससे बाँटूँ जीवन के वे

छुटपुट दुख-सुख

 

छोटी-छोटी अभिलाषाएं

छोटे-छोटे साझे सपने,

टुकरों- टुकरों में  जिन्हें 

देखा करते थे हमतुम

भागदौड़ के जीवन से,

चुपके-चुपके संजोए

अपने हिस्से के फुर्सत के कुछ पल,

जीवन की वह शक्ति और वह संबल

जिसे पाते थे साझे सपनो में,

छोटी आशाओं में,

जीवन के उन छुटपुट पल को।

प्रिय कहाँ से लाऊं, कहाँ सहेजूँ

स्मृति के उन सुनहले सपनों को,

 

प्रिय किससे बाँटूँ नेह नयन के?

किससे बाँटूँ जीवन के वे

छुटपुट दुख-सुख

आशाओं के वे पलक-झलक

वो निहारना अपलक,

नेह न्योछावर कर-कर के।

आँखों के कोने से देखना बार-बार

फिर मंद- मंद मुस्काकर

खीझ उतारना एक -दूजे का

वह अनुपम अंदाज तुम्हारा कहाँ से लाऊं?

प्रिय किससे बाँटूँ नेह नयन के?

किससे बाँटूँ जीवन के

वे छुटपुट दुख-सुख।

 अब बंद पड़ा रहने दो

जीवन के उस वातायन को,

स्मृतियों के उन अभिलेखों को,

अरमानों के कुम्हलाए

उन हृदय कुसुम को।

प्रिय किससे बाँटूँ नेह नयन के?

किससे बाँटूँ जीवन के

वे छुटपुट दुख-सुख।


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