सोमवार, अप्रैल 30, 2007

जीवन

जीवन स्फुर भावों का संचार ।
सागर से गहरा अंतस्तल,
हुदय में, लहरों सा कोलाहल ।
आशाओं के क्षितिज स्पर्श सा,
सम्मोहन का फैला व्यापार ।।
जीवन स्फुर भावों का संचार ।।

सतरंगे भावों का आडम्बर ।
लहरों सा, उठता-मिटता प्रतिपल,
काम-क्रोध का ताना-बाना,
लोभ-मोह का माया जाल ।।
जीवन स्फुर भावों का संचार ।।

हित अनहित, आलोड़ित मन,
राग-द्वेष उद्वेलित जीवन ।
मदुल मनोहर भावों से,
सिंचित अद्भुत यह संसार
जीवन स्फुर भावों का संचार ।।

कभी भेद-भाव तिरस्कार,
कभी चकित चमत्कृत प्रश्नजाल,
कभी भृकुटि-भाल पर वक्र रेख,
आंलिंगन,चुंबन और सत्कार,
जीवन स्फुर भावों का संचार ।।

क्यों कर हर्ष कैसा विषाद,
क्यों हिल-मिंल,क्यों बीतराग,
चर दिवस की चाँदनी यह,
चर घडी का अंतराल,
जीवन स्फुर भावों का संचार ।।

1 टिप्पणी:

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